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वेदिक भोजन मंत्र

हरिः ओम्!  अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देह्यनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिण॑:। प्र-प्र॑ दा॒तारं॑ तारिष॒ ऊर्जं॑ नो धेहि द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे।। स्वादो॑ पितो॒ मधो॑ पितो व॒यं त्वा॑ ववृमहे।  अ॒स्माक॑मवि॒ता भ॑व।। मोघ॒मन्नं॑ विन्दते॒ अप्र॑चेताः स॒त्यं ब्र॑वीमि व॒ध इत्स तस्य॑। नार्य॒मणं॒ पुष्य॑ति॒ नो सखा॑यं॒ केव॑लाघो भवति केवला॒दी।।

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शुक्ल यजुर्वेदीय सुक्त संग्रह  Samhita:-  Rigveda Samhita Path Yajurveda Samhita Path Shukla Yajurveda madhyandini sakha Samveda Samhita Path  Atharveda Samhita Path Brahman : Arnyak: Upnishad:

भारत

भारत शब्द पर विचार करें तो हम इसे दो भागों में विभक्त कर सकते है " भा " और‌ " रत "। " भा " अर्थात प्रकाश, प्रकाश ज्ञानवाचक शब्द है, इसलिए प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक मानते हैं और अंधकार को अज्ञान का, एवं " रत " का अर्थ है समर्पित होना, अतः जम्बूद्वीप (Earth) के जिस भू-भाग के लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए समर्पित रहते है, उस भू-भाग का नाम भारत है। ज्ञान के प्रकाश से ही मानव अपने धर्म एवं अपने कर्म का निर्धारण करता है, ज्ञानी मनुष्य ही अपने धर्म और‌ कर्म के द्वारा लोककल्याण में अपना योगदान दे सकते हैं।  भौगोलिक दृष्टि से भारत का वर्णन इस प्रकार है -  उत्तरम् यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणाम् । वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।। (विष्णु पुराण) अर्थात : - समुद्र से उत्तर और हिमपर्वत से दक्षिण के बीच की भू-भाग को भारत कहते हैं, तथा इसमें रहने वाले भारती कहलाते हैं।  यह पवित्र भूमि सदैव ज्ञानोपासना के लिए उत्कृष्ट रही है, पृथ्वी के अन्य भाग का मानव जब वनचर कहलाता था उस समय इस भूमि पर महाकवि कालिदास द्वारा मेघदूत की रचना की गई थी। मोक्ष की संकल्पना भा